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सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर मैं गया नहीं

सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर मैं गया नहीं

सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर मैं गया नहीं
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक ये पता नहीं ।

उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख करीब हो कभी मैंने उसको छुआ नहीं ।

ये खुदा की देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा वो मिल गया जिसे मैंने चाहा मिला नहीं ।

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई खबर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं ।
                                                                               -बशीर बद्र 

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